जब हम छोटे होते हैं, तब हमारे आस-पास का माहौल हमारी सोच, आदतों और स्वभाव को बनाता है। यह माहौल सिर्फ माता-पिता या स्कूल से नहीं आता, बल्कि हमारी संस्कृति से आता है। संस्कृति वह अदृश्य धागा है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है, चाहे हम दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हों। सोचिए – जब भी हम कोई त्योहार मनाते हैं, जैसे दिवाली, ईद, क्रिसमस या पोंगल, तब हम सिर्फ मिठाई नहीं खाते, हम एक परंपरा को आगे बढ़ा रहे होते हैं। हमारी हर क्रिया में हमारे पूर्वजों का अनुभव छिपा होता है। यही संस्कृति हमें सिखाती है कि खुशी का मतलब सिर्फ पैसा नहीं होता, बल्कि साथ मिलकर रहना और बांटना होता है। 1. बचपन का असर छोटी उम्र में जो आदतें और संस्कार हम सीखते हैं – जैसे बड़ों का सम्मान करना, छोटों को प्यार देना, त्योहार मनाना – वे हमेशा हमारे साथ रहते हैं। जब हम बड़े होकर जिंदगी की परेशानियों का सामना करते हैं, तो यही संस्कार हमें मजबूत बनाते हैं। अगर किसी ने बचपन से यह सीखा है कि “इंसानियत सबसे बड़ी चीज है” , तो वह हमेशा दूसरों का सम्मान करेगा। आज के समय में यह सबसे जरूरी बात है। 2. पहचान का आधार कभ...
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